Friday, 15 March 2013

सायें


सुबह के दों बिछड़े हुए सायोंको देखकर

मुझे याद आये कल श्यामके तुम्हारे साथ गुजारे हुए कुछ लम्हे

वैसे तो सायोंमे नहीं खोजता हूँ मैं तुझे , पर क्या करे

श्याम और सुबह के बीचमे एक काली रात जो आ गयी ,

और दुसरे दिन सुबह एक साया छोड़ गयी ,

इसलिए हमने अब रातोंको आशियाना बना दिया है ,

जिसमे न तुम होती हो , न तुम्हारे सायें होते है ,

बस होती है वही श्याम की वोह धुन्दलिसी यादें ,

जो साथ देती है जीवन के सफ़र मैं एक हमसफ़र बन के 

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