Saturday, 17 December 2011

बेवफ़ा

तुम्हारा ख्वाब ही देखता था मैं पहले
जिसे सचमे बदला था तुने
मगर तुम तो वो ना हो , जो बेवफा थी
आज ऐसेही मुजे मेरा ख्वाब याद  आया


क्या वोह राते थी बहारों की और फूलोंकी
क्या वोह बाते थी निगाहोंकी और दो दिलों की
मगर तुम तो वो ना हो , जो बेवफा थी
आज ऐसेही मुजे मेरा ख्वाब याद  आया

सुनते थे हम दूसरोंके बेवफाई के किस्से
हम तो पार गए थे उस सबसे
मगर तुम तो वो ना हो , जो बेवफा थी
आज ऐसेही मुजे मेरा ख्वाब याद  आया

क्या यही था अंजाम अपने प्यार का
कौनसा वोह रास्ता था आखिर दिल का
मगर तुम तो वो ना हो , जो बेवफा थी
आज ऐसेही मुजे मेरा ख्वाब याद  आया

जिंदगी ने ये क्या खेल खेला है मुज़से
जो अलग कर लिया है मुजे तुज़से
मगर तुम तो वो ना हो , जो बेवफा थी
आज ऐसेही मुजे मेरा ख्वाब याद  आया


 

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