Thursday, 24 November 2011


कांटे 

हम क्या बात  करे उन लोगों से 
जिन्हें हमे समज़ना आता  नहीं
फुल भी क्या खिले किसी निगाहोंसे
जिन्हें काटोंसे संभालना आता नहीं


जब काटोंकी जरुरत है फूलोंके लिए
तो उन्हें काटोंसे संभालना क्यों आता  नहीं
जब दोस्त की जरुरत है जीने के लिए
तो उन्हें हमे समज़ना क्यों आता नहीं


दुनियाने दिया क्या हमको
या हमे ही लेना आता नहीं
क्यों लोगोंसे नाराज हो
शायद हमे ही बताना आता नहीं

हम है कांटे उन फूलोंके लिए
जिनसे बीछद्दना हम चाहते नहीं
दिल भर जाता है उन्ही काटोंसे
जो  फुलोंका अरमान चाहता  नहीं


अब तो हम ही है खुद के लिए
किसी दूसरेको चाहते नहीं
काटोंसे वफ़ा है जिन्दगीकी
अब किसी फुलोंका वास्ता नहीं


सोचते है --- बस हुआ अब रोना
लेकिन हसना भी आता नहीं
क्या करे ऐसे रहके जिन्दा
लेकिन मरना भी आता नहीं 

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