Wednesday 30 October 2013

जख्म

कल ही तो मिले थे , मगर ऐसा लग रहा है
कि सदिया बीत गयी, यांदे तो बहुत है
मगर खिले फूलोंके तरह मुरझा जाती है
दिन तेरा हुआ और रात अकेली है
क्या करू यादों से खुश मैं था ही नहीं कभी

रात तो रोज आती है , दिन भी रोज जाता है
फिर तुम क्यों नहीं रोज साथ होती हो ,
कभी कभी चमकनेवाले चाँद का वास्ता मत देना ,
तारोंसे नाता टूट जायेगा ,मेरा रिश्ता तो सूरज से है,
क्या करू तेरे सिवा जिंदगी मैं उजाला था ही नहीं कभी

मुरझाये फुलोंका वास्ता भी मत देना
फिर कलियों से नाता टूट जायेगा
कल के मिलने का किस्सा मत दोहराना
आज के न मिलने का जख्म गहरा हो जायेगा
क्या करू तेरे सिवा जिन्दा मैं था ही नहीं कभी

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