Sunday 5 July 2015

खुशियोंके किनारे

रातके परदे पे 
पल  चमका ये गुमसुम 
चांदनी के होठोंपे 
यादें है तब्बसुम 

कल्पना  की राहों पर 
हवाओंकी है ये बोली 
कल के सूरज को 
चाँद की है ये डोली 

बादलोंके सर पे जो 
सपनोंके बंधे सेहरे 
हौसलों का बरसा पानी
आशाओंकी कश्तियाँ , खुशियोंके किनारे ----

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